शैक्षिक नीतियों एवं कार्यक्रमों को बनाने और उनके क्रियान्वयन में केंद्र सरकार की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। इनमें सन् 1986 की राष्ट्रीय शिक्षा-नीति (एनपीई) तथा वह कार्रवाई (पीओए) शामिल है, जिसे सन् 1992 में अद्यतन किया गया। संशोधित नीति में एक ऐसी राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली तैयार करने का प्रावधान है जिसके अंतर्गत शिक्षा में एकरूपता लाने, प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम को जनांदोलन बनाने, सभी को शिक्षा सुलभ कराने, बुनियादी प्राथमिकता शिक्षा की गुणवत्ता बनाए रखने, बालिका शिक्षा पर विशेष जोर देने, देश के प्रत्येक जिले में नवोदय विद्यालय जैसे आधुनिक विद्यालयों की स्थापना करने, माध्यमिक शिक्षा को व्यवसाय परक बनाने,उच्च शिक्षा के क्षेत्र में विविध प्रकार की जानकारी देने और अंतर अनुशासनिक अनुसंधान करने, राज्यों में नए मुक्त विश्वविद्यालयों की स्थापना करने,अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिष द्को सुदृढ़ करने तया खेलकूद, शारीरिक शिक्षा, योग को बढ़ावा देने एवं एक सक्षम मूल्यांकन प्रक्रिया अपनाने के प्रयास शामिल हैं। इसके अलावा शिक्षा में अधिकाधिक लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करने हेतु एकविकेंद्रीकृत प्रबंधन दांचे का भी सुझाव दिया गया है। इन कार्यक्रमों के कार्यान्वयन में लगी एजेंसियों के लिए विभिन्न नीतिगत मानकों को तैयार करने हेतु एक विस्तृत रणनीति का भी पीओए में प्रावधान किया गया है। एनपीई द्वारा निर्धारित राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली एक ऐसे राष्ट्रीय पाठ्यक्रम ढांचे पर आधारित है जिसमें अन्य लचीले एवं क्षेत्र विशेष के लिए तैयार घटकों के साथ ही एक समान पाठ्यक्रम रखने का प्रावधान है। जहां एक ओर शिक्षा नीति लोगों के लिए अधिक अवसर उपलब्ध कराए जाने पर जोर देती है,वहीं वह उच्च एवं तकनीकी शिक्षा की वर्तमान प्रणाली को मजबूत बनाने का आह्वान भी करती है। यह नीति शिक्षा के क्षेत्र में कुल राष्ट्रीय आय का कम से कम 6 प्रतिशत निवेश करने पर भी जोर देती है।
Saturday, 28 May 2016
राष्ट्रीय जैव-प्रौद्योगिकी विकास नीति National Biotechnology Development Strategy
13 नवम्बर, 2007 को केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय जैव-प्रौद्योगिकी विकास नीतिको अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी गई। यह नीति सम्बन्धित मंत्रालयों, उपभोक्ता समूहों, गैर-सरकारी और स्वैच्छिक संगठनों तथा अंतरराष्ट्रीय निकायों सहित विभिन्न वर्गों के लोगों के साथ दो वर्ष चले राष्ट्रव्यापी परामर्श प्रक्रिया का परिणाम है। इस नीति के अंतर्गत एक राष्ट्रीय जैव-प्रौद्योगिकी विनियामक प्राधिकरण का गठन किया जाएगा। राष्ट्रीय जैव-प्रौद्योगिकी नीति के प्रमुख तथ्य निम्नलिखित हैं-
- एक राष्ट्रीय जैव-प्रौद्योगिकी विनियमन प्राधिकरण गठित किया जायेगा, जो कि एक स्वतंत्र, स्वायत्त एवं व्यावसायिकता पर आधारित निकाय होगा।
- जैव-प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव के नेतृत्व में एक उच्चाधिकार प्राप्त अंतर-मंत्रालयी समिति की स्थापना की जाएगी।
- जैव-प्रौद्योगिकी विभाग के बजट का 30 प्रतिशत भाग सार्वजनिक निजी भागीदारी कार्यक्रमों पर व्यय किए जाएंगे।
- जैव-प्रौद्योगिकी विभाग के स्वायत्त संस्थानों के लिए अनुसंधान एवं विकास के क्षेत्र में उत्कृष्टता को बढ़ावा देने हेतु नई भूमिका दर्शाना।
- फरीदाबाद (हरियाणा) में विज्ञान, शिक्षा एवं जैव-प्रद्योगिकी क्षेत्र में नवीनता के लिए यूनेस्को क्षेत्रीय केंद्र स्थापित करना।
- छात्रवृतियों, सदस्यता तथा अनुसंधान एवं विकासकी सहायता के रूप में अभिनव पुनर्प्रवेश पैकेज।
- प्रौद्योगिकी का व्यापक इस्तेमाल बढ़ाने के लिए अनुवाद संबंधी नई पहल करना।
- अंतरराष्ट्रीय भागीदारी बढ़ाना।
- 11वीं योजना के दौरान जैव-प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विश्वस्तरीय संस्थागत अनुसंधान क्षमता की दृढ़ता हेतु 50 विशिष्ट केंद्रों की स्थापना करना।
- वैज्ञानिक खोजों को उपयोगी उत्पादों के रूप में परिवर्तित करने हेतु नवीन राष्ट्रीय पहल करना।
- एक विश्वस्तरीय मानव राजधानी बनाने के उद्देश्य से एशियाई क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ स्तर तक पहुंच बनाने के क्रम में उन्नत एवं विस्तृत पी.एच.डी. एवं शोधोतर (Post Doctoral) कार्यक्रम संचालित करना।
- नए कानूनों के रूप में सार्वजनिक वित्त पोषित अनुसंधान और विकास (बौद्धिक सम्पदा का संरक्षण, प्रयोग एवं विनियमन) विधेयक, 2007 का प्रारूप विधेयक तैयार करना।
- जैव-प्रौद्योगिकी विभाग के प्रस्ताव के अनुसार नए संस्थागत ढांचे की स्थापना करना।
- कृषि, स्वास्थ्य, ऊर्जा एवं पर्यावरण के क्षेत्र में प्रमुख चुनौतियों की पहचान करना।
- अभिनव एवं त्वरित प्रौद्योगिकी तथा उत्पाद विकास को प्रोत्साहित करने हेतु मुख्य रणनीति के रूप में क्लस्टर के विकास पर बल देना।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी नीति Science and Technology Policy
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के भावों कार्यक्रमों की रुपरेखा तैयार करने और नई पहलों की दिशा देने के लिए सरकार ने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी नीति, 2003 की घोषणा की है। इस नीति में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी प्रशासन के प्रति व्यवहार, विद्यमान भौतिक एवं ज्ञान संसाधनों के उचित प्रयोग, प्राकृतिक आपदाओं के प्रान्धन तथा उनसे उबरने हेतु नवीन प्रौद्योगिकी एवं प्रणालियों के विकास, नई प्रद्योगिकी के विकास, बौद्धिक सम्पदा के सृजन एवं प्रबंधन तथा विज्ञान एवं प्रद्योगिकी के लाभों एवं उपयोगों सम्बन्ध में जन-साधारण के मध्य जागृति उत्पन्न करने की रूपरेखा बनाई गई है।
सरकार द्वारा घोषित इस नवीन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी नीति के प्रमुख बिन्दु निम्नवत् हैं-
- हमारे पारम्परिक ज्ञान के साथ नवीनतम वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिकीय क्षमताओं को प्रयुक्त करते हुए राष्ट्र के प्रत्यक्ष व सतत् विकास हेतु प्रयत्न करना,
- विभिन्न विश्वविद्यालयों, वैज्ञानिक व इंजीनियरिंग संस्थानों इत्यादि में वैज्ञानिक अनुसंधान को प्रोत्साहन देना; मेधावी युवाओं को इस क्षेत्र में विद्यमान रोजगार के अवसरों से परिचित कराते हुए उन्हें विज्ञान व प्रौद्योगिकी को भविष्य के रूप में अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना; चुनिंदा क्षेत्रों में उच्चतम अंतरराष्ट्रीय स्तर के विशिष्ट केंद्रों की स्थापना करना तथा उनकी निरंतरता बनाए रखना जिससे श्रेष्ठ स्तर का कार्य निष्पादन हो सके;
- वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिकीय गतिविधियों में महिलाओं की पूर्ण व समान भागीदारी सुनिश्चित करना;
- अनुसंधान एवं विकास शोध संस्थाओं को कार्य करने की स्वतंत्रता तथा आवश्यक स्वायत्त प्रदान करना, ताकि वास्तविक रचनात्मक परिवेश को प्रोत्साहन प्राप्त हो तथा वैज्ञानिक व प्रौद्योगिकीय उद्यम राष्ट्र के प्रति अपने सामाजिक दायित्वों व कर्तव्यों के निर्वहन के लिए कटिबद्ध हो;
- यह सुनिश्चित करना कि विज्ञान का संदेश साधारण जन तक पहुंच सके ताकि एक व्यापक वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित हो तथा एक नवीन विकासमान व प्रबुद्ध समाज अस्तित्व में आए, समाज के समस्त लोगों की विज्ञान व प्रौद्योगिकी के विकास तथा इसे मानव कल्याण हेतु प्रयुक्त करने में पूर्ण भागीदारी को संभव बनाने का प्रयत्न करना;
- विज्ञान व प्रौद्योगिकी से संबद्ध निजी व सार्वजनिक संस्थाओं के मध्य अनुसंधान व नवाचारों को प्रोत्साहित करना; जैव प्रौद्योगिकी, दवा, फार्मेसी एवं अन्य पदार्थों से संबंधित प्रौद्योगिकी को विशेष महत्व प्रदान करना;
- एक बौद्धिक सम्पदा अधिकार प्रणाली की स्थापना करना जिसमें समस्त प्रकार के अन्वेषको को बौद्धिक सम्पदा के निर्माण व संरक्षण हेतु अधिकाधिक प्रोत्साहन प्राप्त हो,
- मौसम के पूर्वानुमान, प्राकृतिक आपदाओं से बचाव (बाढ़, चक्रवात, भूकम्प,सूखा तथा भूस्खलन) से संबद्ध अनुसंधान व अनुप्रयोग को उत्प्रेरित करना,
- राष्ट्रीय विकास व सुरक्षा के लक्ष्यों को प्राप्त करते हुए विज्ञान व प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय सहयोग को प्रोत्साहित करना तथा इसे हमारे अंतरराष्ट्रीय संबंधों का एक प्रमुख तत्व बनाना।
राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति National Policy on Biofuels
जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति नई और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा तैयार की गई। इसे दिसम्बर, 2009 में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा मंजूरी दी गई। इसकी प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
- 2017 से जैव ईंधन के लिए 20 प्रतिशत मिश्रण के लिए जैव ईथेनॉल और जैव डीजल प्रस्तावित किया है।
- व्यर्थ/डिग्रेडिड/सीमान्त भूमि में होने वाले गैर खाद्य तेल बीजों से जैव डीजल का उत्पादन किया जाएगा।
- जैव डीजल चारे के स्वदेशी उत्पादन पर केन्द्रित होगा और तेल, पाम जैसे वसायुक्त अम्ल रहित (एफएफए) के आयात की अनुमति नहीं होगी।
- उपजाऊ भूमि में पौधारोपण को प्रोत्साहन देने की बजाय समुदाय/सरकारी/जंगली बंजर भूमि पर जैव ईंधन पौधारोपण को बढ़ावा दिया जाएगा।
- इसके उत्पादकों की उचित मूल्य प्रदान करने के लिए जैव ईंधन तेल बीजों के मूल्य को समय-समय पर बदलने के प्रावधान के साथ न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) घोषित किया जाएगा। राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति में निहित एमएसपी प्रणाली की विस्तृत जानकारी पर ध्यान दिया जाएगा और जैव-ईंधन संचालन समिति द्वारा विचार किया जाएगा।
- तेल विपणन कपनियों द्वारा जैव-ईथेनॉल की खरीद के लिए न्यूनतम खरीद मूल्य (एमपीपी) उत्पादन की वास्तविक लागत और जैव-ईथेनॉल के आयातित मूल्य पर आधारित होगा। बायो डीजल के मामले में एमपीपी वर्तमान रिटेल डीजल मूल्य से संबंधित होगा।
- राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति में परिकल्पना की गई है कि जैव ईंधन यानी बायोडीजल और जैव ईथेनॉल की घोषित उत्पादों के तहत रखा जाए ताकि जैव ईंधन के अप्रतिबंधित परिवहन को राज्य के भीतर और बाहर सुनिश्चित किया जा सके।
- नीति में बताया गया है कि कोई कर और कोई शुल्क जैव डीजल पर नहीं लगाया जाना चाहिए।
- राष्ट्रीय जैव ईंधन समन्वय समिति की अध्यक्षता प्रधानमंत्री द्वारा की जाएगी।
- जैव ईंधन संचालन समिति की अध्यक्षता कैबिनेट सचिव द्वारा की जाएगी।
- जैव ईंधन के क्षेत्र में शोध के लिए जैव प्रौद्योगिकी विभाग, कृषि और ग्रामीण विकास मंत्रालय और नई और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के नेतृत्व में संचालन समिति के अधीन एक उप-समिति का गठन किया जाएगा।
- शोध, विकास और प्रदर्शन पर विशेष जोर दिया जाएगा जिसके केंद्र में रोपण, प्रसंस्करण और उत्पादन प्रौद्योगिकी समेत दूसरी पीढ़ी के सेलुलोज से बने जैव-ईंधन शामिल होगे।
Friday, 27 May 2016
केंद्रीय सूचना आयोग Central Information Commission - CIC
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 का अध्याय-तीन, एक केंद्रीय सूचना आयोग तथा अध्याय-चार में राज्य सूचना आयोग के गठन का प्रावधान करते हैं। सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा-12 में केंद्रीय सूचना आयोग के गठन, धारा-13 में सूचना आयुक्तों की पदावधि एवं सेवाशर्ते तथा धारा-14 में उन्हें पद से हटाने संबंधी प्रावधान किए गए हैं।
केंद्रीय सूचना आयोग में एक अध्यक्ष अर्थात् मुख्य सूचना आयुक्त तथा अधिकतम 10 केंद्रीय सूचना आयुक्तों का प्रावधान है। इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। यह नियुक्ति प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में बनी समिति, जिसमें लोकसभा में विपक्ष का नेता और प्रधानमंत्री द्वारा मनोनीत एक संघीय कैबिनेट मंत्री बतौर सदस्य होते हैं, की अनुशंसा पर की जाती है।
मुख्य सुचना आयुक्त एवं अन्य सुचना आयुक्तों का चयन सार्वजानिक सार्वजनिक जीवन में उत्कृष्टता प्राप्त ऐसे व्यक्तियों में से किया जाता है जिन्हें विधि, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, समाज सेवा, प्रबंध, पत्रकारिता, जनसंचार या प्रशासन एवं शासन के क्षेत्र में व्यापक ज्ञान और अनुभव प्राप्त हो। आयोग का मुख्यालय नाइ दिल्ली में होगा किन्तु आयोग केंद्र सरकार की पूर्व अनुमति प्राप्त कर भारत में अन्यत्र भी अपने कार्यालय स्थापित कर सकेगा।
सूचना आयोग की शक्तियां एवं कृत्य
सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा- 18-20 तक में निम्नांकित शक्तियां एवं कृत्य केंद्रीय सूचना आयोग एवं राज्य सूचना आयोग को सौंपे गए हैं-
- अधिनियम के उपबंधों के अधीन रहते हुए आयोग निम्न में से किसी ऐसे व्यक्ति से शिकायत प्राप्त करे और उसकी जांच करे
- यदि वह लोक सूचना अधिकारी को आवेदन प्रस्तुत करने में इसलिए असमर्थ रहा है कि ऐसे अधिकारी की नियुक्ति नहीं हुई है या सहायक लोक सूचना अधिकारी ने आवेदन या अपील को अग्रेषित करने से इंकार किया है।
- जिसे इस अधिनियम के अधीन मांगी गई कोई सूचना तक पहुंच से इंकार किया गया हो।
- जिसे इस अधिनियम के अधीन निर्धारित समय-सीमा के भीतर सूचना के लिए या सूचना तक पहुंच के लिए आवेदन का उत्तर नहीं दिया गया है।
- जिससे ऐसी फीस की राशि अदा करने की अपेक्षा की गई है, जो वह अनुचित समझता है।
- जो यह विश्वास करता है कि उसे इस अधिनियम के अधीन अपूर्ण, भ्रम में डालने वाली या मिथ्या सूचना दी गई है।
- इस अधिनियम के अधीन अभिलेखों के लिए अनुरोध करने या उन तक पहुंच प्राप्त करने से संबंधित किसी अन्य विषय के संबंध में।
- आयोग का यह विनिश्चय हो जाता है कि किस प्रकरण में जांच के लिए युक्तिसंगत आधार हैं तो वह उसके संबंध में जांच आरंभ कर सकेगा।
- आयोग को किसी वाद के विचरण के समय सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के अंतर्गत दीवानी न्यायालय की निम्नांकित शक्तियांप्राप्त (निहित) होंगी
- किसी व्यक्ति को बुलाने और उसकी उपस्थिति सुनिश्चित करने, लिखित या मौखिक गवाही लेने तथा शपथ पर परीक्षण करने;
- किसी दस्तावेज की तलाश करवाने और उसे पेश करवाने;
- शपथ पत्रों पत्र साक्ष्य लेने;
- किसी भी अदालत अथवा कार्यालय से कोई सार्वजनिक अभिलेख या उसकी प्रति प्राप्त करने;
- साक्षियों और प्रलेखों के परीक्षण के लिए आदेश करने; तथा
- अन्य कोई मामला जो दिया जाए, के संबंध में आवश्यक पहल करने की शक्तियां आयोग को प्राप्त होंगी।
- इस अधिनियम के अधीन किसी शिकायत की जांच करते समय आयोग, ऐसे किसी अभिलेख का परीक्षण कर सकेगा जिस पर यह अधिनियम लागू होता है और जो लोकप्राधिकारी के नियंत्रण में है। संसद या राज्य विधायिका का कोई अन्य कानून, आयोग को ऐसा करने से नहीं रोक सकेगा।
- अधिनियम की धारा-19 के तहत् कोई व्यक्ति जिसे निर्धारित समय में निर्णय प्राप्त नहीं हुआ है, या वह प्राप्त निर्णय से व्यथित है तो वह लोक प्राधिकरण में लोक सूचना अधिकारी की पंक्ति में ज्येष्ठ पंक्ति का है, को 30 दिन में अपील कर सकेगा।
- आयोग के निर्णय बाध्यकारी होंगे।
- निर्णय हेतु आयोग को निम्न शक्तियां प्राप्त होंगी–
- लोक प्राधिकरण से ऐसे उपाय कराना जो इस अधिनियम के सम्मिलित हैं-
- सूचना तक पहुंच उपलब्ध कराना, यदि विशिष्ट रूप से प्रार्थना की गई है;
- लोक सूचना अधिकारी को नियुक्त करना;
- कतिपय सूचना या सूचना के प्रवर्गों को प्रकाशित करना;
- अभिलेखों के संधारण, प्रबंधन तथा नष्ट करने से संबंधित पद्धतियों में आवश्यक परिवर्तन करना;
- अपने अधिकारियों के लिए सूचना का अधिकार संबंधी प्रशिक्षण का प्रावधान करना; और
- सूचना के अधिकार से संबंधित एक वार्षिक रिपोर्ट उपलब्ध कराना।
- लोक प्राधिकारी से, शिकायतकर्ता की, उसके द्वारा वहन की गई किसी हानि या अन्य नुकसान के लिए क्षतिपूर्ति करना;
- इस अधिनियम के अधीन उपबंधित शास्त्रियों में से कोई शास्ति अधिरोपित करना;
- आवेदन को अस्वीकृत करना
- आयोग शिकायतकर्ता और प्राधिकारी को अपने निर्णय की, जिसके अंतर्गत अपील का कोई अधिकार भी है, सूचना देगा।
- आयोग, अपील का निर्णय ऐसी प्रक्रियानुसार करेगा, जो निर्धारित की जाए।
- आयोग की राय में यदि लोक सूचना अधिकारी द्वारा बिना युक्तियुक्त कारण के आवेदन लेने से इंकार किया गया हो, निर्धारित समय में सूचना नहीं दी गई हो, या असद्भावनापूर्वक सूचना का आवेदन से इंकार किया गया हो या जानबूझकर गलत, अपूर्ण या भ्रामक सूचना दी गई है या ऐसी सूचना नष्ट कर दी है जो आवेदन से संबंधित थी, या सूचना देने की प्रक्रिया में बाधा डाली गई है तो आवेदन प्राप्ति या सूचना देने के दिन से 250 रुपए प्रतिदिन की शास्ति अधिरोपित की जाएगी।
राष्ट्रीय सूचना प्रौद्योगिकी नीति National Policy on Information Technology
सूचना प्रौद्योगिकी ड्राफ्ट राष्ट्रीय नीति, 2011 सात अक्टूबर, 2011 को जारी की गई। नीति में शिक्षा, स्वास्थ्य, कौशल विकास, वित्तीय समावेशन, रोजगार के अवसर, प्रशासन इत्यादि में विकास संबंधी चुनौतियों से उभरने के लिए तकनीकी-सक्षम तरीकों को लागू करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है ताकि सीमा पार भी अर्थव्यवस्था को अधिक कुशल बनाया जा सके। नीति में मुख्यतः दो लक्ष्यों को पूरा करने की बात की गई है- आईसीटी की पूर्ण ऊर्जा को पूरे भारत की पहुंच में लाना तथा पूरे भारत की क्षमता और मानव संसाधनों का दोहन करना ताकि 2020 तक आईटी-आईटीईएस सेवाओं में ग्लोबल हब के रूप में भारत का उद्भव हो सके।
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